कोरियाः बेहोश प्रसूता का 3 किमी सफर खाट पर एंबुलेंस तक पहुंचने
कोरोना के इस दौर में गर्भवतियां खासी परेशानियों में

डा. निर्मल कुमार साहू, रायपुर। पूरा देश कोरोना से जूझ रहा है। छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य अमला भी पूरी ताकत झोंक कर इसके खिलाफ लगा हुआ है। इन सबको बीच जो समस्याएं सामने आ रही हैं वह है सुरक्षित प्रसव की। जच्चा –बच्चा दोनों के सुरक्षित रहने की। क्वारेंटाइन सेंटरों में खासकर गर्भवतियों को खासी परेशानियां झेलने पड़ी है। इनके मौत की भी खबरें मिलती रही हैं या फिर ये कोविड पाजीटिव पाए गए।
बुरी हालत तो सुदूर वन प्रातों या पहुंचविहिन गांवों की है। मानसून के साथ ही बारिश से आवाजाही जहां मुसीबत बनकर सामने आने लगती है इन इलाकों में वे रामभरोसे हैं, सरकारी मदद मिल गई तो ठीक या फिर मदद का इंतजार करते मौत भी..।
देश के कुछ निजी अस्पतालों में गर्भवतियों को भर्ती करने से पहले कोरोना टेस्ट करवाने के लिए कहकर लौटाए जाने की खबरें मीडिया में सुर्खियां बन रही हैं। कोरोना के कारण किडनी प्रत्यारोपण, हृदय आपरेशन जैसे आपरेशन तक टाले जा रहे हैं।
आम इंसान की परेशानियों, पीड़ाओं को लेकर सोशल मीडिया इन दिनों मुखर है। तस्वीरें पोस्ट की जा रही हैं कि प्रशासन इन पर ध्यान दे। नजर पड़े तो हालात सुधर जाएं। पर हालात सुधरते कहीं नहीं दिखता।
लाकडाउन के इन दिनों में सोशल मीडिया सूचना का एक जरिया बना है। तब मन में सहसा लगा कि क्यों न सीधी बात की जाए वहां से जिसे अक्सर मीडिया में जीरो ग्राऊंड कहा जाता है। वाट्सएप पर आज ऐसी ही तस्वीर मिली। फारवर्ड होकर मुझ तक पहुंचे मूल रुप से इस तस्वीर को भेजने वाले का पता किया और पूरी जानकारी हासिल की।
एक अखबारनवीश के रुप में कम एक सामान्य नागरिक की हैसियत से बात की ताकि वह सहजता से वह सब कहे जिसे अपनों से साझा करता है। फोन पर एक बातचीत गांव से..
इसे देख आप अपने घर के किसी सदस्य के इस खाट में पड़े होने की कल्पना करें।
राजधानी रायपुर से सैकड़ों किलोमीटर दूर सरगुजा संभाग के कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ विधानसभा क्षेत्र की हैं। मनेन्द्रगढ़ के आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायत कटकोना के पारा नेवारी बहरा की बेहोश प्रसूता इस तरह खाट पर 3 किमी सफर के बाद एंबुलेंस तक पहुंचाई गई।
प्रसूता सुनीता पंडो पति सोनू लाल पंडो ने 3 जून को घर पर ही एक शिशु को जन्म दिया था। कल 12 जून की दोपहर उसकी तबीयत बिगड़ने लगी। गांव के पंच रामनाथ पंडो ने सामाजिक कार्यकर्ता रामलाल से मदद की गुहार लगाई कि एक निजी वाहन की व्यवस्था कर भेंजें नहीं तो महिला की जान चली जाएगी। पर इस अंचल में इस तरह की सुविधा संभव कहां।
लिहाजा रामलाल जी ने सलका प्राथमिक स्वास्थ केंद्र के डा.सोनकर से एंबुलेंस के लिए मदद मांगी। डाक्टर का कहना था कि उनके केंद्र का वाहन खड़गवां में किसी मरीज को लेकर आ रहा है लिहाजा अभी तुरंत मदद संभव नहीं है।
रामलाल ने तब 108 को फोन किया। चिरमिरी से निकला 108 एंबुलेंस जब गांव की सरहद तक पहुंचा तो साढ़े 3 बज चुके थे। सरहद से रास्ता इतना खराब कि एंबुलेंस का जाना संभव नहीं। ग्रामाणों की मानें तो यहां पहुंचते एंबुलेंस भी हादसे का शिकार होते बची। अब गांव से 3 किलोमाटर दूर खड़ी एंबुलेंस तक बेहोश प्रसूता को खाट पर इस तरह लाया गया।
रामलाल कहते हैं पीड़िता के पति से बात हुई, उसका कहना है कि वह स्वस्थ हो रही है। हालत पहले से बेहतर है। पर यहां के कई गांव पहुंच विहिन हैं जहां बारिश में साइकिल भी ढोकर ले जाना पड़ता है।
रामलाल कहते हैं किसी तरह पीड़िता को मदद मिल गई इसका उन्हें संतोष है। वे बताते हैं यह इलाका आदिवासी बाहुल्य है। पंडो विशेष संरक्षित जनजाति के अंतर्गत आते हैं। पीड़िता जिस गांव में रहती है वहां सौ घर पंडो आदिवासियों के हैं।
यहां तक पहुंचने का रास्ता कच्चा है। सूखे दिनों में पंगडंडी ही सहारा है। बारिश होते ही आवाजाही के लिए पंचायत मुख्यालय तक पहुचने 12 किमी का सफर तय करना पड़ता है। राशन के लिए दिक्कतें आती हैं। इलाज की सुविधा तो दूर की बात है।
रामलाल बताते हैं अगर यह तीन किलोमीटर सड़क बन जाए तो इन आदिवासियों के लिए सबसे बड़ी सौगात होगी। यहां के लोग सड़क की मांग करते थक चुके हैं। हर बार चुनाव के समय वोट के लिए नेता, जनप्रतिनिधि यहां आते हैं फिर कोई झांकता तक नहीं।
वे कहते हैं सड़क न बन पाने के लिए वन विभाग भी आड़े आता है। वन भूमि के कारण सड़क नहीं बन रही है ऐसा कहा जाता है। पर सरकारी तंत्र समन्वय स्थापित कर रास्ता तो निकाल सकते हैं। अभी हल्की बारिश शुरू हो गई है तब यह हाल है तो आगे न जाने क्या होगा।
यह रिपोर्ट केवल उस सजग ग्रामीण की जानकारी पर है जो उसने फोन पर मुझे दी। तस्वीर काफी कुछ कह रही है, प्रशासन जागे, जनप्रतिनिधि सुध लें, तो हालात सुधर जाए। बस 3 किमी सड़क कच्चा ही सही बन जाये तो इस गांव के लिए जीवनदायिनी होगा।