कोरोना की जंग में हारे छालीवुड डायरेक्टर एजाज वारसी और लोकगायिका लक्ष्मी कंचन

रायपुर | छत्तीसगढ़ी सिनेमा को आज गहरा धक्का पहुंचा है। छालीवुड के दो सितारे जाने-माने डायरेक्टर एजाज़ वारसी और लोक कलाकार लक्ष्मी कंचन का आज निधन हो गया।

छालीवुड डायरेक्टर एजाज़ वारसी का आज शाम 55 वर्ष की आयु में रायपुर एम्स में निधन हो गया। पिछले कुछ दिनों से कोरोना से पीड़ित थे। एजाज़ वारसी हर दिल अजीज थे। 

90 के दशक में छत्तीसगढ़ में जब एलबम का दौर शुरू हुआ था उस समय एजाज वारसी इसकी अहम कड़ी के रूप में उभरे थे। हालांकि उनकी कला जीवन की शुरुआत तो नाट्य मंच से हुई थी। लेकिन अपनी खासी पहचान उन्होंने वीडियो फ़िल्मों से बनाई थी। 

साल 2000 में मध्यप्रदेश से जब छत्तीसगढ़ पृथक हुआ और उस समय छत्तीसगढ़ी फिल्म की नै शुरुआत हुई,तो एजाज वारसी इस समय भी बड़े पर्दे का नूर कहलाये। छालीवुड में वारसी ने अनेक भूमिका निभाई,जिनमे चरित्र अभिनेता के साथ साथ खलनायक की भूमिका में वे रुपहले परदे पर नजर आए।

लंबे अनुभव से गुजरने के बाद उन्होंने फ़िल्म ‘पहुना’ से बतौर निर्देशक के रूप में एक नई शुरुआत की थी। 

वारसी ने बीते दशक में कई छत्तीसगढ़ी फिल्मो का निर्देशन किया है।  सबसे बड़ी बात ये है की वारसी को कम बजट में मसालेदार फिल्म बनाए की माहरत हासिल थी। इसलिए फिल्म निर्माताओं का झुकाव उनके तरफ था।  वारसी ने अब तक  ‘किरिया’, ‘माटी मोर मितान’, ‘बेर्रा’, ‘त्रिवेणी’ एवं ‘दहाड़’ फ़िल्में डायरेक्ट की जो प्रदर्शित हो चुकी हैं। ये सभी फिल्मे छत्तीसगढ़ी बॉक्स ओफ्फ्स में कमाल भी दिखाया। 

बीते 12 फरवरी को एजाज वारसी निर्देशित हिन्दी-छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘कहर द हैवक’ सिनेमा घरों में प्रदर्शित की गई। उनकी कुछ फिल्मे अभी तक प्रदर्शित नहीं हो पाई है।  जिनमे ‘अंधियार’, ‘गद्दार’, ‘लफंटुश’, ‘कुश्ती एक प्रेम कथा’, ‘इश्क लव अउ मया’ एवं ‘दगा’ शामिल है।  

नहीं रही लोकगायिका लक्ष्मी कंचन

कोरोना के गाल में छत्तीसगढ़ी कला जगत की एक और कलाकार लक्ष्मी कंचन ने भी आज बिलासपुर दम तोड़ दिया। कुछ दिनों पहले ही कंचन का रिपोर्ट पॉजिटिव आया था। उनका इलाज भी जारी था,लेकिन आज वो जिंदगी से हार गई। लोक मंजरी लोक कला मंच की जानी मानी कलाकार लक्ष्मी कंचन को कोई नहीं भूल सकता। कंचन गायिका के साथ ही गीतकार भी थीं। गुरु बाबा घासीदास के कई गीतों को उन्होंने अपनी आवाज से पिरोया था। उन्होंने भरथरी सुआ एवं पंथी गीत पर अपनी पकड़ जमाई थी। उनकी आवाज में इतनी खनक थी कि लोग उनकी आवाज को सुनने आतुर हो उठते थे।

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प्रकाशित
Swaroop Bhattacharya

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